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Whose Incarnation Was Karna in Mahabharata
जब भी महाभारत के सर्वश्रेष्ठ योधा महानायक अर्जुन की बात की जाती है तो , उनके विपक्ष में महारथी कर्ण का नाम अवश्य आता है ।
महाभारत के युद्ध में अर्जुन का सामना केवल तीन ही लोग कर सकते थे वह थे पितामह भीष्म ,गुरु द्रोणाचार्य और विजय धारी कर्ण । कर्ण एक महान योधा थे और उनके पास अनेक अनेक दिव्य अस्त्र था ।
तो आखिर कर्ण किसके अवतार थे वह अपने पूर्व जन्म में क्या थे ?
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कर्ण के माता पिता कौन थे ? Mahabharat
महाभारत काल के विजय धारी कर्ण एक ऐसा योद्धा थे जिन्होंने अपने पूरे जीवन काल संघर्ष करके बिताए हैं , जन्म होते ही उनके मां ने उनको त्याग दिए थे , बाद में जाकर अधिरथ और उसकी पत्नी राधा ने कर्ण का पालन पोषण किए थे । इसलिए कर्ण को राधा के नाम से जाना जाता है ।
महारथी कर्ण का गुरु कौन थे ? Mahabharat
पितामह भीष्म और गुरु द्रोण के बाद भगवान परशुराम के प्रिय शिष्य थे दानवीर कर्ण । भगवान विष्णु के छठे बता भगवान परशुराम ने अपने सारे दिव्य अस्त्र का ज्ञान कर्ण को प्रदान किए थे ।
उसके साथ-साथ उन्होंने भगवान शिव का विजय धनुष भी कर्ण को प्रदान किए थे , महाभारत के युद्ध में कर्ण ने अपने विजय धनुष से कई सहस्त्र सैनिकों और महारती योद्धाओं को परास्त किए हैं । कर्ण के धनुष की प्रत्यंचा मात्र से ही पूरे युद्ध क्षेत्र गूंज उठता था , इस धनुष का तरकस अक्षय था इस तरकस के बाण कभी समाप्त नहीं होते थे ।
यह किसी शस्त्र से नष्ट नहीं हो सकता था तथा अन्य लाख धनुष का सामना कर सकता था । जो भी इसे धारण करता था उसमें अनंत शक्ति का संचार हो जाता था ।
भगवान परशुराम से प्राप्त भार्गवा अस्त्र Mahabharat
भगवान परशुराम ने उन्हें उनका एक अनोखी दिव्यास्त्र भार्गवा अस्त्र प्रदान किए थे । जिस जरासंध का वध करने में महाबली भीम को 24 दिन लग गए थे , वहीं पर कर्ण ने जरासंध को एक ही दिन में परस्त कर दिया था । कर्ण को दिग्विजय योद्धा भी कहा जाता है वह पांच पांडवों के ज्येष्ठ भ्राता थे और वह भीम के जितना बलशाली यद्ध तथा अर्जुन के जितना धनुर विद्या में पारंगत थे ।
कर्ण एक महान दानवीर थे ? Mahabharat Mahabharat
महारथी कर्ण का प्रशंसा जितना उनका धनुर्विद्या को लेकर किया जाता है , उतना ही उनका दानवीर ताका भी है । उन्होंने तो इंद्रदेव को अपना कवच और कुंडल शरीर से भेद करके प्रदान किए थे ।
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तो आखिर कर्ण किसके अवतार थे ? Mahabharat
वेदव्यास रचित महाभारत के अनुसार , महारथी कर्ण भगवान सूर्यनारायण के ही अंश अवतार थे ।
दरअसल कर्ण ही अपने पूर्व जन्म में दंभोद्भवा नामक एक असुर थे , उन्होंने तपस्या करके सूर्यदेव को प्रसन्न कर उनसे
एक 1000 अवैध कवच और कुंडल प्राप्त किए थे । सूर्यदेव ने उन्हें वरदान दिया था कि , जो भी यह कवच को तोड़ेगा उसकी मृत्यु हो जाएगी ।
दंभोद्भवा ने वर्धन पाने के बाद देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया । उसका वध करने हेतु भगवान विष्णु ने नर और नारायण का अवतार लिए , और उससे युद्ध करते समय कवच टूटने पर उनमें से एक की मृत्यु हो जाती थी और दूसरा अपने तप के बल से उसे जीवित कर देता था । इसी तरह उन्होंने दंभोद्भवा असुर का 1000 अवेद कवच तोड़ दिए और उसका वध कर दिए ।
महाभारत काल में नर और नारायण का अवतार
भगवान नर और नारायण ने ही द्वापर युग में अर्जुन और श्री कृष्ण के रूप में अवतरित हुए थे । रथ पर सवार श्री कृष्णा और अर्जुन को देखने के लिए देवता भी स्वर्ग से उतर गए थे ।
ओम नमः शिवाय जय सियाराम