आखिर कितना शक्तिशाली था कर्ण का कवच और कुंडल? How Powerful Was Kavach and Kundal of Karna

How Powerful Was Kavach and Kundal of Karna

आखिर कितना शक्तिशाली था कर्ण का कवच और कुंडल Karna

How Powerful Was Kavach and Kundal of Karna

महाभारत काल के योद्धा महारती कर्ण के पास तीन अमोग दिव्यास्त्र थे , एक था उनका विजय धनुष जिसे उन्होंने उनके गुरु भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम से प्राप्त किए थे और दूसरे थे उनके कवच और कुंडल ।

ऐसा कहा जाता है कि सूर्यदेव से प्राप्त यह कवच और कुंडल अंतिम युद्ध तक उनके पास होता तो , उनको पूरे संसार में कोई भी शक्ति परस्त करने में असफल होता । भगवान सूर्यनारायण के पुत्र महारती कर्ण के पास ऐसे कबज कुंडल थे , कि यदि महाभारत के युद्ध में वह कबज कुंडल उनके पास होता तो , वह अजय होते और उनका वध करने में असंभव होता ।

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यह कबज और कुंडल उनको जन्म से ही सूर्यदेव से प्राप्त हुआ था , परंतु एक युक्ति से उसके कवच और कुंडल दोनों को दान में मांग लिया गया था और फिर उस कवच और कुंडल को कहीं छुपाकर रखा गया , जो आज भी इस धरा पर कलयुग में भी एक पवित्र स्थान पर छुपा हुआ है ।

कितना शक्तिशाली था कर्ण का कवच और कुंडल Karna

भगवान सूर्यनारायण से प्राप्त कर्ण का दिव्य कवच इतना शक्तिशाली था कि इसको ब्रह्मास्त्र से भी भेद नहीं किया जा सकता और स्वर्ण कुंडल जो उन्हें अमरता प्रदान करती थी ।

महारथी कर्ण का दानवीरता

महारथ कर्ण का प्रशंसा जितना उनका धनुर्विद्या को लेकर किया जाता है , उतना ही उनका दानवीर ताका भी है । उन्होंने तो इंद्रदेव को अपना कवच और कुंडल शरीर से भेद करके प्रदान किए थे ।

How Powerful Was Kavach and Kundal of Karna

कर्ण के गुरु कौन थे ? Karna

कर्ण के भी गुरु भगवान परशुराम ही थे , भगवान विष्णु के छठ अवतार भगवान परशुराम ने अपने सारे दिव्य स्तरों का ज्ञान करण को प्रदान किए थे । उसके साथ-साथ उन्होंने भगवान शिव का विजय धनुष भी कर्ण को प्रदान किए थे ।

वह पांच पांडवों के ज्येष्ठ भ्राता थे और वह भीम के जितना बलशाली योधा तथा अर्जुन के जितना धनुर विद्या में पारंगत थे ।

कर्ण ने कैसे अपने कवच और कुंडल को दान में दिये थे ? Karna Karna

भगवान कृष्णा को यह भली बाती पता था कि जब तक कर्ण के पास उसका कबज और कुंडल है तब तक उसे कोई मार नहीं सकता । ऐसे में अर्जुन की सुरक्षा हेतु देवराज इंद्र भी चिंतित थे क्योंकि अर्जुन उनका पुत्र था , तो उन्होंने एक योजना बनाकर कर्ण से छलपूर्वक उसके कवच और कुंडल दान में मांग लिए थे ।

कर्ण ने भी अपना कवच और कुंडल बिना कुछ चिंता किये महादानी की तरह इंद्रदेव को दान में दे दिये थे ।

कहाँ पर हैं कर्ण का कवच और कुंडल ?

कहा जाता है कि यह कव जर कुंडल को उड़ीसा के पूरी के पास स्थित कोणार्क मंदिर के समुद्र के पास कहीं छुपाया गया है । कवच और कुंडल को ऐसा छुपाया गया है कि कोई भी , यहां तक पहुंच नहीं सकता क्योंकि अगर किसी ने इस कवच और कुंडल को ढूंढ लिया , तो वह इसका गलत तरीके से उपयोग भी कर सकता है ।

कितना शक्तिशाली था कर्ण का विजय धनुष ? Karna Karna

विजय धनुष धारण करने के कारण कर्ण को विजय धारी कहा जाता था । विजय एक ऐसा धनुष था कि किसी भी प्रकार के अस्त्र या शस्त्र से इसे खंडित नहीं किया जा सकता , इसमें तीर छूटते ही भयानक ध्वनि उत्पन्न होते थे । कहते हैं कि कर्ण का विजय धनुष मंत्रों से इस प्रकार अभिमंत्रित था , कि वह जिस भी योद्धा के हाथ में होता था उस योद्धा के चारों तरफ एक ऐसा अभेद गहरा बना देता था , जिसे भगवान शिव की पशुपतास्त्र भी भेदने में सक्षम नहीं था ।

मंत्रों से अभिमंत्रित होने के कारण उस विजय धनुष पर जिस भी बाण को रखकर चलाया जाता था , उस बाण की ताकत उसकी वास्तविक ताकत से कई गुना बढ़ जाती थी ।

ओम नमः शिवाय जय बजरंग वाली

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