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भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में हाथ और पैर क्यों नहीं होते?
भगवान जगन्नाथ, पुरी धाम के प्रमुख आराध्य, विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा के केंद्र में रहते हैं। लेकिन आपने कभी गौर किया है कि भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में ना हाथ हैं, ना पैर, और उनका चेहरा भी बहुत विशिष्ट है — बड़ी गोल आंखें, अधूरी काया और लकड़ी से निर्मित एक साधारण आकृति।
क्या यह केवल मूर्तिकला की शैली है या इसके पीछे कोई गहरा आध्यात्मिक रहस्य छिपा है?
आइए इस रहस्य से परदा हटाते हैं।
1. महाभारत काल से जुड़ी कथा
यह माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का यह स्वरूप महाभारत काल से जुड़ा है। कथा के अनुसार, महर्षि विदुर श्रीकृष्ण के देहांत के बाद अत्यंत शोकाकुल थे। उन्होंने भगवान के शरीर के अवशेष को नदी किनारे प्राप्त किया और एक गुप्त स्थान पर उन्हें लकड़ी में स्थापित करने का संकल्प लिया।
परंतु जब वह मूर्ति बनाने लगे, तभी एक दिव्य प्रेरणा से मूर्तिकार ने उसे अधूरा ही छोड़ दिया — और वही रूप आज पुरी जगन्नाथ मंदिर में पूजा जाता है।
2. विश्वकर्मा और राजा इंद्रद्युम्न की कथा
एक और मान्यता के अनुसार, पुरी के राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान विष्णु की एक अद्वितीय मूर्ति बनवाने का निश्चय किया। उन्होंने भगवान विश्वकर्मा को मूर्ति बनाने के लिए आमंत्रित किया। शर्त थी कि जब तक मूर्ति बन रही हो, कोई दरवाजा नहीं खोलेगा।
लेकिन कई दिन बीत जाने पर जब कोई आवाज नहीं आई, तो राजा ने व्याकुल होकर द्वार खोल दिया। उसी समय विश्वकर्मा अंतर्धान हो गए, और मूर्ति अधूरी रह गई — बिना हाथ और पैरों के।
किन्तु भगवान ने स्वप्न में राजा को दर्शन दिए और कहा —
“यही मेरा पूर्ण रूप है। इसी में मेरी लीला छुपी है।”
Table of Contents

3. गूढ़ प्रतीक और दर्शन
भगवान जगन्नाथ के इस अधूरे स्वरूप के पीछे कई गूढ़ आध्यात्मिक संकेत भी छिपे हैं:
हाथ और पैर नहीं हैं, क्योंकि ईश्वर हर दिशा में व्याप्त हैं, उन्हें सीमाओं में बाँधा नहीं जा सकता।
बड़ी गोल आँखें इस बात का प्रतीक हैं कि भगवान हर समय अपने भक्तों को निहारते रहते हैं, बिना पलक झपकाए।
उनका रूप दर्शाता है कि भगवान के लिए बाह्य रूप या पूर्णता की आवश्यकता नहीं, उनका प्रेम और भक्ति ही उन्हें पूर्ण बनाता है।
4. भक्ति का प्रतीक: अधूरा होकर भी संपूर्ण
भगवान जगन्नाथ का यह स्वरूप हमें सिखाता है कि
“परमात्मा को देखने के लिए नेत्र चाहिए, बाह्य रूप नहीं।”
उनका अधूरा शरीर यह संदेश देता है कि भगवान को पाने के लिए शरीर नहीं, भावना चाहिए।
भक्त जब प्रेमपूर्वक जगन्नाथ जी की सेवा करता है, तब वो अधूरी मूर्ति भी जीवंत लगती है।
5. काष्ठ मूर्ति का रहस्य
पुरी का मंदिर भारत का एकमात्र ऐसा बड़ा मंदिर है जहां भगवान की मूर्ति पत्थर की नहीं बल्कि लकड़ी की होती है — और हर 12-19 वर्षों में यह मूर्ति “नवकलेवर” के दौरान बदली जाती है।
इस परंपरा के पीछे यह विचार है कि
“जगत में कुछ भी स्थायी नहीं है — यहां तक कि ईश्वर का रूप भी!”
लेकिन उनकी आत्मिक शक्ति और उपस्थिति शाश्वत है।
🔚 निष्कर्ष
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का अधूरा रूप कोई संयोग नहीं, बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि ईश्वर को पाने के लिए बाहरी सुंदरता या रूप नहीं, बल्कि आस्था, प्रेम और भक्ति की आवश्यकता होती है।
उनका यह रहस्यमयी रूप भक्तों के मन में एक ही भाव भरता है —
“वो अधूरे दिख सकते हैं, लेकिन हमारे जीवन को संपूर्ण कर सकते हैं।”
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❓ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में हाथ और पैर क्यों नहीं होते?
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी इसलिए है क्योंकि यह उनके गूढ़ और निराकार रूप का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि ईश्वर को शारीरिक रूप में नहीं, बल्कि भावना और भक्ति से जाना जाता है।
2. क्या भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी है?
हां, शारीरिक दृष्टि से मूर्ति अधूरी है — उसमें हाथ और पैर नहीं होते। लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से यह अधूरी नहीं, बल्कि पूर्णता का प्रतीक है।
3. इस अधूरी मूर्ति के पीछे कौन सी कथा प्रसिद्ध है?
पुरी के राजा इंद्रद्युम्न और विश्वकर्मा से जुड़ी कथा के अनुसार, जब मूर्ति निर्माण के दौरान द्वार खोल दिया गया, तो विश्वकर्मा अधूरी मूर्ति छोड़कर अंतर्धान हो गए। भगवान ने स्वप्न में कहा, “यही मेरा पूर्ण रूप है।”
4. भगवान जगन्नाथ की आंखें इतनी बड़ी क्यों होती हैं?
उनकी बड़ी गोल आंखें इस बात का प्रतीक हैं कि भगवान हर समय, हर दिशा में, बिना पलक झपकाए अपने भक्तों को देखते रहते हैं।
5. पुरी मंदिर की मूर्तियाँ लकड़ी की क्यों होती हैं?
पुरी जगन्नाथ मंदिर भारत का एकमात्र प्रमुख मंदिर है जहाँ मूर्तियाँ लकड़ी की होती हैं। हर 12 से 19 वर्षों में इन्हें नवकलेवर अनुष्ठान के तहत बदला जाता है।
6. क्या भगवान जगन्नाथ, श्रीकृष्ण का ही रूप हैं?
हां, भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के साथ त्रिमूर्ति रूप में पूजा जाता है। वे श्रीकृष्ण के निराकार-अवतारी रूप माने जाते हैं।
7. क्या अधूरी मूर्ति में भगवान की पूरी शक्ति होती है?
बिलकुल! अधूरी प्रतीत होने वाली मूर्ति में भी पूर्ण ईश्वरीय शक्ति होती है। यह भक्तों की श्रद्धा और आस्था पर आधारित होती है, न कि मूर्ति के भौतिक रूप पर।
8. क्या इस अधूरे स्वरूप का कोई विशेष संदेश है?
हां, यह रूप सिखाता है कि ईश्वर को पाने के लिए शरीर नहीं, भक्ति चाहिए। ईश्वर सीमाओं में नहीं बंधते, वे हर रूप में व्याप्त हैं।
📝 लेख का सारांश (Summary in Hindi):
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में हाथ और पैर क्यों नहीं होते — यह प्रश्न लाखों भक्तों के मन में आता है। यह कोई साधारण मूर्तिकला नहीं, बल्कि एक गूढ़ आध्यात्मिक रहस्य है।
प्राचीन कथाओं के अनुसार, यह रूप महाभारत काल से जुड़ा है और राजा इंद्रद्युम्न तथा भगवान विश्वकर्मा की कथा भी इसमें जुड़ी है।
उनका यह अधूरा रूप हमें सिखाता है कि ईश्वर को सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। बिना हाथ-पैर के यह मूर्ति दर्शाती है कि भगवान हर दिशा में उपस्थित हैं और उनकी दृष्टि हर क्षण अपने भक्तों पर रहती है।
यह मूर्ति प्रेम, भक्ति और विश्वास का प्रतीक है — अधूरी होकर भी पूर्ण, और भौतिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक पूर्णता की अनुभूति देती है।
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